यह कहानी है एक होशियार लेकिन संघर्षशील छात्र "रुद्र" की, जो अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए कोलकाता आया था। वह कोलकाता विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में पढ़ाई करना चाहता था।
कोलकाता की भीड़-भाड़, इतिहास से भरी इमारतें और गलियों की गूंज रुद्र को आकर्षित करती थीं। लेकिन उसका मन किताबों और ज्ञान में ही रमा रहता था। जब जीवन ने उससे एक बड़ा फैसला करवाया, तो वह अपने छोटे से शहर को छोड़कर इस महानगर में आ गया।
उसे कोलकाता आए छह साल हो चुके थे। शुरुआती दिनों में उसने बहुत संघर्ष किया। लोग उसे नादान समझकर ठग लेते, कोई काम करवाकर पैसे नहीं देता, तो कोई खाने का लालच देकर भगा देता। यही थी रुद्र की शुरुआत।
फिर एक दिन वह कोलकाता विश्वविद्यालय के सामने से गुज़र रहा था, जब उसने देखा कि कॉलेज के गेट से छात्र-छात्राएं अंदर-बाहर आ-जा रहे हैं। पहली बार उसे इस शहर में कुछ अच्छा महसूस हुआ।
वह आगे बढ़ा और गेट पर खड़े एक गार्ड से बोला, “अंकल जी, मुझे यहाँ पढ़ना है। कृपया बताइए, मैं एडमिशन कैसे ले सकता हूँ?”
तभी एक दूसरा गार्ड चिल्लाया, “भागो यहां से! बहुत देखे हैं तुम्हारे जैसे। हर रोज़ परेशान करने चले आते हो।”
रुद्र डर के मारे पीछे हट गया। लेकिन पहले वाले गार्ड ने डांटते हुए कहा, “बब्लू, चुप रहो। बच्चा सिर्फ पूछ रहा है, इसमें क्या गलत है?”
वह रुद्र के पास आया और प्यार से पूछा, “बेटा, तुम यहां क्या कर रहे हो? तुम्हारे माता-पिता कहां हैं?”
रुद्र की आंखों में दर्द था। बोला, “मैं अनाथ हूं, जब मैं 10 साल का था, तभी अपने परिवार से बिछड़ गया था।”
यह सुनते ही गार्ड ने कहा, “कोई बात नहीं बेटा, जो होता है, अच्छे के लिए होता है। तुम दुखी मत हो। बताओ, तुम यहीं क्यों पढ़ना चाहते हो?”
रुद्र ने जवाब दिया, “अंकल, मैंने यहां के बच्चों को कॉलेज के बारे में बहुत कुछ अच्छा कहते सुना। मैं भी कुछ बनना चाहता हूं, इसलिए यहीं पढ़ना चाहता हूं।”
गार्ड मुस्कराया और बोला, “तुम ज़रूर पढ़ सकते हो। इसके लिए तुम्हें एंट्रेंस एग्ज़ाम देना होगा। और एडमिशन के लिए थोड़े पैसे भी लगेंगे।”
रुद्र ने आत्मविश्वास से कहा, “ठीक है अंकल, मैं ये एग्ज़ाम ज़रूर दूंगा और पास भी करूंगा।”
इतना सुनते ही वहां खड़े कुछ छात्र हँसने लगे। बोले, “मज़ाक कर रहा है क्या? एंट्रेंस एग्ज़ाम पास करने के लिए किताबें चाहिए, और पढ़ाई के लिए पैसे। तेरी हालत देखकर तो ये मुमकिन नहीं लगता।”
एक और छात्र बोला, “और मान लो कि सब कुछ है तेरे पास, तब भी अब सिर्फ तीन महीने बचे हैं एग्ज़ाम के लिए। इतने कम वक्त में कैसे तैयारी करेगा?”
रुद्र ने सबकी बात ध्यान से सुनी, फिर दृढ़ता से कहा, “शुक्रिया मुझे सब कुछ बताने के लिए। अब तक मुझे यह सब नहीं पता था। लेकिन एक बात पक्की है—मैं ये एग्ज़ाम ज़रूर पास करूंगा। मुझे कोई नहीं रोक सकता।”
अब तो वहां खड़े छात्र ही नहीं, कुछ माता-पिता भी हँसने लगे।
रुद्र ने सबकी तरफ देखा, गार्ड से कहा, “थैंक्यू अंकल, सारी जानकारी देने के लिए।” और बिना कुछ कहे, वहां से निकल गया—सपनों की चमक आंखों में लिए।
रुद्र उस दिन चुपचाप चला तो गया, लेकिन उसके भीतर कुछ बदल चुका था। लोगों की हँसी अब उसके इरादों को कमजोर नहीं, बल्कि और मज़बूत कर रही थी। उसने खुद से वादा किया—"अब चाहे जो हो जाए, मैं इस कॉलेज में ज़रूर पढ़ूंगा।"
उसने अगले दिन से तैयारी शुरू कर दी। उसके पास ना किताबें थीं, ना नोट्स, ना गाइडेंस, लेकिन उसमें एक चीज़ सबसे ज़्यादा थी—जज़्बा।
वह दिन भर शहर में भटकता, पुराने अखबार इकट्ठे करता, कबाड़ी की दुकानों से पुराने नोट्स मांगता, और जब मिल जाते तो उन्हें पढ़-पढ़कर समझने की कोशिश करता। पास की एक छोटी सी लाइब्रेरी में उसने एक कोना ढूंढ लिया था, जहां वह घंटों बैठकर पढ़ाई करता।
कुछ समय बाद, वहीं लाइब्रेरी में एक लड़का उससे मिला—नाम था अर्जुन। वह भी उसी कॉलेज का छात्र था। पहले तो उसने रुद्र को नज़रअंदाज़ किया, लेकिन फिर उसकी लगन और मेहनत देखकर खुद रुक गया।
अर्जुन ने पूछा, “तू हर दिन यहां आता है... कौन-सी परीक्षा की तैयारी कर रहा है?”
रुद्र ने सिर उठाकर कहा, “कलकत्ता यूनिवर्सिटी का एंट्रेंस। तीन महीने में पास करना है।”
अर्जुन पहले तो चौंका, फिर मुस्कराया। “इतनी लगन तो हमारे कॉलेज के लड़कों में भी नहीं दिखती। चल, मैं तेरी मदद करूंगा।”
यहीं से रुद्र की ज़िंदगी ने मोड़ लिया। अर्जुन ने उसे किताबें दीं, पुराने पेपर्स दिए, और जब समय मिला, खुद भी उसे समझाया।
धीरे-धीरे रुद्र का आत्मविश्वास बढ़ता गया। जिन गलियों में कभी वो भूखा भटकता था, अब वहीं वो उम्मीद की तलाश में चल रहा था।
हफ्ते बीते,महीने बीते,अब तो तीन महीने बीत गए। एंट्रेंस एग्ज़ाम का दिन आ गया।
सुबह-सुबह रुद्र सबसे पहले कॉलेज के गेट पे पहुंचा। उसने अपना रोल नंबर चेक किया, और उसी क्लास में जाकर बैठ गया, जहां उसकी किस्मत तय होने वाली थी। उसके हाथ कांप रहे थे, लेकिन आँखों में वही चमक थी—जो हर बार कह रही थी, "तू कर सकता है।" थोड़ी देर में उससे परीक्षा प्रशन मिला उसने सबसे पहले अपने कॉपी पे अपना नाम रोल नंबर लिखा फिर प्रशन पत्र पढ़ने लगा कुछ देर बाद उससे लगा यही सब तो वो कुछ दिन से पढ़ रहा था और अब
"उसे बनाने में आसानी हुई” | उसने हर प्रश्न का उत्तर सही दिया| उसने सबसे पहले अपना "उत्तर पुस्तिका” जमा किया|
थोड़ी देर बाद एग्ज़ाम खत्म हुआ। रुद्र परीक्षा हॉल से बाहर आया, और लंबी सांस ली। चेहरे पर थकान थी, लेकिन दिल में तसल्ली थी कि उसने अपनी पूरी ताकत लगा दी।
अब इंतज़ार था—परिणाम का।
चार हफ्ते बाद।
कॉलेज के बाहर भीड़ जमा थी। हर किसी के हाथ में एक ही कागज़ थी — एंट्रेंस एग्ज़ाम का रिजल्ट था।
रुद्र के हाथ कांप रहे थे। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। उसने वो लिस्ट ढूंढी, जहां नाम लिखे थे। फिर वह जाकर उसने सबको साइड करते हुए आगे बढ़ा | फिर उसकी आंखें तेजी से नामों को स्कैन कर रही थीं।
“Roll No – 703172, Name – Rudra – Qualified”
उसने दो बार पढ़ा, फिर तीसरी बार। और फिर… उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े। ये आंसू हार के नहीं थे—ये जीत की पहली बूंद थे।
वो खुशी से चिल्ला नहीं सका, बस वहीं खड़ा होकर चुपचाप मुस्कराया। जैसे उसकी मेहनत ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा हो—"तू कर सकता है... और तूने कर दिखाया।"
वो भीड़ से बाहर निकला फिर उसने पास ही खड़े अर्जुन को गले लगाया । अर्जुन ने रुद्र का कंधा थपथपाया और कहा, “बधाई हो, अब तू भी हमारे साथ उसी क्लास में होगा।”
रुद्र ने पहली बार खुद को किसी काबिल महसूस किया
पहले दिन रुद्र जब यूनिफॉर्म पहनकर कॉलेज के गेट से अंदर गया, तो वही गार्ड जिसने उसे डांटा था, पहचान नहीं पाया। लेकिन दूसरा गार्ड—जिसने उसका साथ दिया था—उसे देखकर मुस्कराया।
“आ गया बेटा, आखिरकार... तुझे देखकर बहुत खुशी हो रही है।”
रुद्र ने उनके पैर छुए और कहा, “आपने उस दिन मुझे सिर्फ जवाब नहीं दिया था, आपने मुझे एक दिशा दी थी।”
“रुद्र का जीवन अब किस दिशा में जाएगा? आखिर कौन है रुद्र—क्यों उसे इतनी कठिन ज़िंदगी जीनी पड़ रही है? क्या कभी वो अपनी सच्चाई किसी को बताएगा?”