लक्ष्य बैंक के अंदर दाखिल तो हो गया था लेकिन जब मैनेजर ने उससे पैसे निकालने के लिए कार्ड माँगा तो उसके पास कार्ड नहीं था। उसकी फटेहाल हालत देखकर पहले ही मैनेजर को ग़ुस्सा आ रहा था और अब उपर से लक्ष्य ने ये डिमांड रख दी कि वो फ़िंगरप्रिंट से पैसे निकालना चाहता था। लेकिन पानी तब सर से ऊपर निकल गया जब उसकी उँगली मैच ही नहीं हुई। मैनेजर ने फ़ोन निकाला और पुलिस को फ़ोन लगाने लगा।
"अरे- अरे ये क्या कर रहे हो! देखिए सर मेरी बात सुनिए! मैं कोई क्रिमिनल नहीं हूँ! हो सकता है कि मैंने गलत उँगली लगा दी हो! बस आप मुझे एक लास्ट बार फ़िंगरप्रिंट लगा लेने दीजिए! बस!" लक्ष्य ने उसके सामने हाथ जोड़ते हुए कहा।
"अगर ये उँगली भी नहीं लगी ना तो फिर ये मत कहना कि मैं अगली उँगली ट्राय करके देखता हूँ। बार- बार ऐसा नहीं चलने वाला है। अगर ये वाली काम नहीं की तो मैं सीधा पुलिस को फ़ोन कर दूँगा।" मैनेजर ने लक्ष्य को धमकाते हुए कहा।
उसने अपने एक हाथ में मशीन और दूसरे हाथ में मोबाइल पकड़ा हुआ था। उसकी स्क्रीन पर उसने पुलिस का नम्बर खोल रखा था और उसका अंगूठा हरे बटन पर ही टिका हुआ था। इधर लक्ष्य ने फिर से अपने सीधे हाथ की उँगली को अपनी पेंट से साफ़ किया और भगवान का नाम लेकर उसे उस मशीन पर लगा दिया। जैसे ही उसकी उँगली उस मशीन पर पड़ी, अबकी बार फिर मशीन में से एक आवाज़ आई और वो चमककर हरी हो उठी।
तभी मैनेजर के मोबाइल पर मेसेज आया, "वेरिफ़िकेशन सक्सेस्फ़ुल। खाता-1, नाम लक्ष्मण लाल अग्रवाल, खाता नम्बर-01104।" जैसे ही मैनेजर ने इस मेसेज को देखा उसकी आँखें फटी की फटी रह गई थी। उस मशीन पर चमकती लाइट को देखते हुए लक्ष्य की आँखों में भी चमक आ गई थी।
लक्ष्य उस हरी बत्ती को देखते ही झूम उठा और फिर उसने मैनेजर को घूरकर देखा। उसके दिमाग़ में वो सारी बातें चल रही थीं जो मैनेजर उसे थोड़ी देर पहले सुना रहा था।
इधर मैनेजर ने भी उसके आगे हाथ जोड़े और खिसियाकर हँसते हुए कहा, "लक्ष्मण सर! प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना। मैं इस ब्रांच में नया- नया आया हूँ और इसलिए मुझे मालूम नहीं था कि आप कौन हो। मैं इस ब्रांच का कस्टमर मैनेजर शशिकांत वर्मा हूँ। प्लीज़ आगे भी मेरा ध्यान रखना सर!"
"हाँ- हाँ ठीक है। तुम बस मुझे ये बताओ कि मेरे खाते में कितने पैसे रखे हुए हैं?" लक्ष्य ने कहा और वो अब सोफ़े पर बैठ गया।
मैनेजर उसके सामने खड़ा हुआ था और उसके खाते की जानकारी अपने फ़ोन पर निकाल रहा था। उसने अपने फ़ोन पर इधर-उधर कुछ उँगलियाँ चलाईं और बोला, "हो गया सर! आपके खाते में इस वक़्त 90 करोड़ 80 लाख 70 हज़ार छह सौ पचास रुपए रखे हुए हैं।"
शशिकांत के खुद के होश इतनी बड़ी रक़म को देखने के बाद उड़ गए थे। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि इस आदमी के खाते में इतना पैसा हो सकता था।
लक्ष्य की शक़्ल देखकर तो यही लग रहा था कि उसकी उम्र 20 - 22 साल से ज़्यादा नहीं थी। ऐसे में अगर उसके खाते में इतना सारा पैसा था, तो यह वाक़ई बहुत बड़ी बात थी। शशिकांत अपने मन में सोच रहा था कि दुनिया के 99 पर्सेंट लोग अपनी पूरी ज़िंदगी काम करने के बाद भी इतना पैसा नहीं कमा सकते थे जितना की लक्ष्य के खाते में इतनी छोटी सी उम्र में रखा हुआ था।
लेकिन जब लक्ष्य ने उसके फ़ोन में अपने खाते की जानकारी देखी, तो उसे कुछ अजीब लगा। उसे लग रहा था कि उसे अब अपनी ज़िंदगी को इतने पैसों के हिसाब से ढालने की कोशिश करनी चाहिए थी, वरना उसके साथ वही सब होने वाला था, जो आज बैंक में हुआ था।