कहते हैं, "मुंबई सपनों का शहर है, जहाँ लोग अपने ख्वाब पूरे करने आते हैं। दिल्ली दिल वालों का शहर है, मगर दिल तोड़ने वालों का भी।" और फिर है कोलकाता—"यह दिल की धड़कनों का शहर है, प्रेम और संघर्ष का शहर, जहाँ ज़िंदगी की असली धुन बजती है।"
अवि, यानी अद्विक राठौर, इस कहानी का नायक है। एक साधारण लड़का, जिसकी जेब भले ही खाली हो, लेकिन आत्मसम्मान से भरा हुआ। लोग उसे देखकर कहते, "ये लड़का गरीबों का सरदार है।" मगर अवि के लिए ये कपड़े उसकी परिस्थितियों की कहानी थे, जिनसे वह भाग नहीं सकता था।
हर सुबह सूरज की पहली किरणें उसके छोटे से कमरे में झांकतीं और अवि अपनी पढ़ाई और खर्च के लिए निकल पड़ता—दो नौकरियों में बंधा हुआ। दिन में मेडिकल शॉप और शाम को एक रेस्टोरेंट में।
मेडिकल शॉप का नाम था लाला मेडिकल हॉल, जिसका मालिक अमर लाल था—एक कठोर स्वभाव का व्यक्ति। एक शाम जब अवि रेस्टोरेंट में अपना काम खत्म कर रहा था, तभी उसका फोन बजा।
"अवि, तुरंत दुकान पर आओ," अमर लाल की तेज आवाज़ फोन पर गूंजी। "साहब, मेरा काम अभी पूरा नहीं हुआ है," अवि ने शांति से जवाब दिया। "मुझे परवाह नहीं! अभी आओ!" अमर लाल ने फोन काट दिया।
अवि ने रेस्टोरेंट के मैनेजर से जल्दी छुट्टी मांगी और भागते हुए दुकान की ओर निकल पड़ा।
लाला मेडिकल हॉल के अंदर अमर लाल उसे देखते ही बोला, "अब रात के 12 बजे तक यहीं रहोगे। एक्स्ट्रा पैसे मिलेंगे, लेकिन कहीं नहीं जाना। मुझे घर जाना है, मौसम खराब हो रहा है।" अवि ने सिर हिला दिया। "अगर कोई ग्राहक आए तो सामान दे देना, और अगर कोई फोन करे तो कह देना कि आज डिलीवरी नहीं होगी।" इतना कहकर अमर लाल दुकान से चला गया।
अवि ने काउंटर संभाला और ग्राहकों की भीड़ को निपटाने में जुट गया। तभी एक अजीब सा फोन आया।
"हेलो, मैं अद्विक बोल रहा हूँ, लाला मेडिकल से। आपको क्या चाहिए?" दूसरी तरफ से गहरी आवाज़ आई, "तीन एक्स्ट्रा लार्ज कंडोम और पाँच वियाग्रा की गोली लेकर होटल पहुँचो।"
अवि ने हिचकिचाते हुए कहा, "साहब, बारिश हो रही है, आज डिलीवरी नहीं हो पाएगी।" आवाज़ में गुस्सा भड़क उठा, "तू जानता है मैं कौन हूँ? मेरा बाप कौन है?" अवि ने ठंडे स्वर में जवाब दिया, "मुझे परवाह नहीं, साहब। आज डिलीवरी संभव नहीं है।" और उसने फोन रख दिया।
कुछ ही देर में अमर लाल का फोन बजा। दूसरी ओर एक कड़क आवाज़ थी, "सिंघानिया साहब का ऑर्डर अभी भेजो, वरना सोचना पड़ेगा।"
बारिश में भीगते हुए अमर लाल दुकान पहुंचा "अवि, तुमने किसी सिंघानिया का कॉल काटा?" "हाँ साहब, लेकिन आपने ही कहा था कि डिलीवरी नहीं करनी।" "सिंघानिया के लिए नहीं! उनकी बात अलग है!" अमर लाल की आवाज़ कांप रही थी।
अमर लाल ने जल्दी से कहा, "मेरी बाइक लो और होटल जाकर सामान दे आओ। जल्दी करो, वरना कल से काम पर मत आना।"
अवि ने धीरे से कहा, "साहब, बारिश बहुत तेज़ है, बाइक खराब हो गई तो हम दोनों का नुकसान होगा।" अमर लाल ने सख्त लहजे में कहा, "तुम्हें जाना ही पड़ेगा।"
अवि ने बिना कुछ कहे रेनकोट पहना और बाइक लेकर होटल के लिए निकल पड़ा।
बारिश के बीच सड़क पर तेज़ बारिश और फिसलन भरी सड़क पर, अवि धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। उसके दिमाग में शनाया के साथ बिताए हुए लम्हे घूमने लगे। काश वह इस वक्त उसके साथ होती। दोनों इस बारिश में भीगते हुए स्ट्रीट फूड का मज़ा लेते।
लेकिन आज हकीकत कुछ और थी। जब वह होटल पहुँचा, तो उसकी नज़र उस शानदार इमारत पर ठहर गई। यह वही होटल था, जिसके बारे में उसने कभी सपने देखे थे। वह भारी दिल से अंदर दाखिल हुआ और रिसेप्शन पर जाकर बोला, "मुझे मिस्टर ईशान सिंघानिया के लिए डिलीवरी देनी है।"
कमरा नंबर 304
अवि ने लिफ्ट का बटन दबाया, उसका दिल जोर से धड़कने लगा। जब वह पांचवीं मंजिल पर पहुँचा, तो उसने कमरे की घंटी बजाई। दरवाजा खुला और उसके सामने उसकी गर्लफ्रेंड शनाया खड़ी थी—एक स्लीवलेस नाइटी में। अद्विक एक पल के लिए जैसे जम गया।
"अद्विक?" शनाया के चेहरे पर घबराहट थी। "तुम यहाँ क्या कर रही हो?" अवि की आवाज़ में आक्रोश और सदमा था।
अंदर से ईशान की आवाज़ आई, "जल्दी करो, डिलीवरी आ गई है?" और फिर ईशान खुद कमरे से बाहर आया। अवि को देखकर वह मुस्कुराया, "तुम्हें अब तक समझ जाना चाहिए था। वह अब मेरी है।"
अवि का खून खौल उठा। वह गुस्से में ईशान पर टूट पड़ा और उस पर मुक्के बरसाने लगा। ईशान ने खुद को बचाने की कोशिश की, लेकिन अवि का गुस्सा काबू से बाहर था।
"रुको, अद्विक!" शनाया ने चिल्लाते हुए कहा, लेकिन अद्विक को अब कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। घबराकर शनाया ने पास रखा फूलदान उठाया और अद्विक के सिर पर दे मारा। खून बहने लगा और वह जमीन पर गिर पड़ा। ईशान ने खड़े होकर व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, "तुम्हें समझना चाहिए था, अद्विक। उसने कभी तुमसे प्यार नहीं किया।"
शनाया ने ठंडे स्वर में कहा, "यह खत्म हो चुका है, अद्विक। तुम्हारे पास कुछ नहीं है। मैं ईशान से प्यार करती हूँ, क्योंकि वह मुझे वो सब दे सकता है, जो तुम नहीं दे सकते।"
अवि ने आंसुओं के साथ कहा, "मैंने तुमसे सच्चा प्यार किया था। क्या यह काफी नहीं था?"
अवि की आँखों में आंसू थे, लेकिन अब वह टूट चुका था। वह लड़खड़ाता हुआ कमरे से बाहर निकला। बाहर मूसलधार बारिश हो रही थी। बाइक पर बैठकर वह बिना किसी दिशा के चल पड़ा।
घंटों बाद, वह ओशन बीच पर जा पहुँचा। भीगते हुए, उसने समुद्र की लहरों के बीच चिल्लाकर पूछा, "भगवान, मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ? मैंने क्या गुनाह किया था?"
अचानक, उसके फोन की घंटी बजी। वह फोन उठाकर बमुश्किल बोला, "हैलो?"
दूसरी तरफ से एक जानी-पहचानी, बूढ़ी आवाज़ आई, "अद्विक, दादाजी तुमसे मिलना चाहते हैं। कल विला पर आओ। हमें बहुत कुछ बात करनी है।"
अवि को समझ नहीं आया कि यह कौन था और क्यों उसे बुला रहा था। उसने फोन रखा और आसमान की ओर देखा।
शायद, उसके जीवन में अभी कुछ और बाकी था—शायद एक नया मकसद।